Badal Par Shayari
ए बादल तू इतना ना बरस
की वो आ न सके
उसके आने के बाद इतना बरस की
वो जा न सके।
बादलो को गुरुर था कि वो उच्चाई पे है
जब बारिश हुई तो उसे भी जमीन की मिट्टी ही रास आयी।
तेरी मोहब्बत भी बारिश की तरह निकली
छाई मुझ पर और बरस गईं किसी और पर
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Badal Shayari |
आज बादल काले घने है
आज चाँद पे लाखो पहरे है
कुछ टुकड़े तुम्हारी यादो के
बड़ी देर से दिल में ठहरे है।
बादल की तरह कभी रो लेना चाहिए
ज़िन्दगी का सूखापन दूर हो जाता है।
बादलों सा इश्क था उसका
थोड़ी देर बरस कर कही खो गया।
उस मखमली दुप्पटे में छिपा तेरा नूर
जैसे बादलोके पीछे चाँद शरमारहा हो।
ग़मो के बादल घिरते है दिल के आसमान पर
फिर भी आँसुओ की बरसात नहीं होती।
ए बादल तू आज बरस जा
कुछ तो मुझ पर तरस खा।
जैसे बादल के बिना बारिश नहीं हो सकती
वैसे माँ के बिना जिंदगी नहीं हो सकती।।
आप मेरे लिए बादल की तारा हो
जब भी सूरज मेरी आँखो में चुभता है
तुम बादल की तरह मेरे सामने आ जाते हो।
सोचता हु की बादल बनकर बरस जाऊ
मजूर हो तो बारिश बन जाऊ
अगर नहीं तो फिर कभी आऊ
या बरसने की ख्वाहिश को जाउ।
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता हे
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझते है.
बादलो की ऊंची उडान उनकी
सबसे अलग थी पहचान उनकी
उनसे थी प्यास की कहानी मसूब।
किसी के गम में कभी हम इसान भी भीग जाते है
पैमाना नहीं बादलो का जो इनके गम में पुरे
शहर भीग जाते है।
इतना जला हूँ तेरी याद में कही काजल न बन जाऊ
एक दिन जब तू भी याद करेगी कही बादल न बन जाऊ।
गगन से निचे नहीं उतरते कभी वो मद भरे बादल
शायद उन्हें भी गुमान इंद्र की सता का होगा।
बादल तो बेवक्त ही गरजते है साहब
हम मनुष्य थोड़ा मौन रहकर भी देखते है।
जोरो से बरस लाए थे सैलाब
दिल बादल का भी टुटा होगा आज।
बादल हो या काजल
बह जाना ही मुकदर है।
में भी बादलो की तरह विवश हूँ
ना तेरे करीब आ सकता हूँ
ना तुझसे दूर जासकता हूँ
एक सिमित दूर से तुजे तकते हुए
तुझ ही पर अपना अस्तित्व लुटा रहा हूँ।
गरजने वालो पर क्या यकि करना अजहर
बादल तो बिन गरजने वाले ही बरसात करते है।
काले काले बादल धीर गई
रिमझिम रिमझिम सावन ले कर
कहने को सब हसते रहते
मन मे अत्यत दुःख ले कर।
बादल के गरजने पर जो कभी
लिपट जाया करती थी
वो आज बादल से भी ज्यादा
गरजती है।
उन बादल को भी तकलीफ
तो होती होंगी
जिनसें बुन्द बिछङकर जमीन
पर आ गिरती हे।
जहा मेरा घर था वहीं बारीश हुई
आज बादल ने फिर साजिश की
अगर पलक को जिद हे बिजलिया गिराने की
तो हमें भी ज़िद हे वही पर आशिया
बसाने की।
सूरज निकलने वाला है
बादल की ओट से
सफ़र जारी रखो वक्त
बदल ने वाला हे।
वो बरस गए बादलो का
ग़ुनाह नहीं
दिल हल्का करने का हक़
तो सबको होता है।
पर्वत की बाहो मेँ बादलो के
छाये में
राते यही कटती हे झील की
पनाहो मेँ।
अजा फिर लड़ाई हो गई है बादल से
आज फिर बारिश जमी पर आ गई।
” पढ़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद ”