धुप पर शायरी
धूप गज़ब की है इस शहर में
मगर मैने दिल पिघलते नहीं
देखा किसी का।
रूहानी होती है वक्त की ताकत,
धूप कितनी सुहानी होती है सर्दी की।
बहुत कड़ी धूप है जल रहा है बदन,
जरूर कुछ तकलीफ़ है लेकिन
घर चल रहा है।
जिस धूप में आज सुकून है,
इसी धूप में कल जलन होगी।
ये धूप जरा ढल जाए तो हाल पूछेंगे,
यहां कुछ साए अपने आप को
खुदा बताते है।
धूप छाँव का तमाशा कब तलक यूँ देखना,
फिर ना धूप में धने पेड़ों का
साया देखना।
कभी बारिश तो कभी धूप से परेशान है,
फिर भी इंसान हमेशा फ़ायदे
में रहता है।
हाथ मिलाया न करे हाल पूछा न करे,
मैं खुश हूँ इसी धूप में कोई साया न करे।
हट जाऊ कैसे धूप से में,
मेरे कुछ लोग साए में खड़े है।
जिन्हें बहुत दिनों से ओढ़ा नहीं है,
उन रिश्तो को कल धूप दिखाने
का मन है।
रख दिया मुझे छाँव में जलते रहे
खुद धूप में,
ऐसा एक फरिश्ता मैंने देखा है अपने
पिता के रूप में।
मुझे चिलचिलाती धूप में जब भी
छांव की तलाश होती है,
तो बेचैन नजरें मेरी बस मेरे पिता
को खोजती है।
तुम बादल बन जाना धूप पड़े उस पर तो,
मिलने आये अब वो तो उसको
घर ठहराना।
सफ़र में जो चल सको तो चलो धूप तो होगी,
भीड़ में सभी है तुम निकल
सको तो चलो।
धूप ने गुज़ारिश की,
एक बूंद बारिश की।
धूप आने लगी है तेरी यादों की,
खुल जायेगा अभी मौसम हमारा।
भरोसा कर लिया झूट पर उस के,
धूप इतनी थी की साया कर लिया।
रुकें तो धूप से नजरें बचाते रहते है,
चलें तो कितने दरख्त आते जाते रहते है।
धूप के एक ही मौसम ने जिन्हे तोड़ दिया,
इतने नाज़ुक भी ये रिश्ते न बनाये होते।
ये धूप, ये कांटे, ये पत्थर इनसे
कैसा डरना है,
राहें छोड़ी जाती है मुश्किल हो
जाएं तो।
हर रोज़ करती है धूप ये अठखेलियां,
एक छाया सीढ़ियां चढ़ती उतरती है।
सूरज तो डूबता ही नहीं ग़म का,
धूप ही धूप है किधर जाएं।
जुदा हो जाएगा धूप बढ़ते ही,
साया ए दीवार भी दीवार से।
उन के घर की दीवार मिरी धूप ले गई,
बात ये भूलने में जमाना लगा मुझे।
धूप की रंगत बदल गई छाँव की शक्ल,
अब ये लू चली है की सूरत बदल गई।
शाम ढली किस को खबर है कब
धूप चली,
मैं इक उम्र से अपने ही साए में
खड़ा हूँ।
ठंडी हो रही है चाय होठों के प्यालों में,
ढलने लगी है धूप इंतजार है आँखों में।
जिंदगी में धूप है तो कभी छाँव है,
ए जिंदगी तेरे न जाने कितने रूप है।
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में,
उजाले पाँव पटकने लगे है पानी में।