जुदाई पर शायरी 

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 किस्मत पर एतबार किसको है मिल जाये ख़ुशी इंकार किसको है कुछ मजबूरिया है वर्ना जुदाई से प्यार किसको है 

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 तेरी मोहब्बत के सिवा और क्या चाहिए हमें तू बांध ले बंधन में मुझे तुझसे जुदाई किसे चाहिए

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ना मेरा दिल ख़राब था ना आप में कोई बुराई थी ये सब तो नसीब का खेल है बस हमारी किस्मत में जुदाई थी 

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 ना आपको खोना चाहता हु ना जुदाई में रोना चाहता हु जब तक ज़िन्दगी हे तब तक आपके साथ रहना चाहता हु 

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 न जाने दिल में कैसे तेरे लिए इतनी जग़ह बन गई तेरी जुदाई के बाद भी मेरे जीने की तू वज़ह बन गई 

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 मज़बूरी में जब कोई जुदा होता हे जरुरी नहीं वो बेवफ़ा होता है जुदाई के आंसू देकर आपको अकेले में आप से ज्यादा वो रोता हे 

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 प्यार न करना किसी से इसका दर्द तुम सह नहीं सकोंगे जब जुदाई मिलेंगी प्यार में तो फिर जीने का मन नहीं होगा 

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 इश्क में तन्हाई क्यों मिलती है यादो में गम की परछाई क्यों मिलती है जितना करीब रहने की कोशिश करो उतनी ज्यादा जुदाई क्यों मिलती है 

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 काश ये जुदाई न होती  खुदा तूने ये चीज बनाई न होती, न मिलने उनसे न प्यार होता ज़िन्दगी मेरी यु पराई न होती 

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 कोई रूठे तो उसे जल्दी ही मना लिया करो गरूर की इस जंग में अक्शर जुदाई ही जित जाती है 

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 जुदाई अपना काम कर गई तुझे पाने की चाहत मर गई