ज़िम्मेदारी पर शायरी 

 हँसकर भी देख लिया रोकर भी देख लिया जिन्दगी को वही अच्छे से जी सकता है जिसने ज़िम्मेदारी लेना सिख लिया 

 बचपन में ही ज़िम्मेदारी को सर पर सजाया था हमने तो बचपन में ही अपना बचपन गवाया था 

 घर में बड़े थे इसलिए दूर रहना सिख लिया हमने जिम्मेदारियों का बोझ था हम पर इसलिए बचपन जल्द छोड़ दिया हमने 

 थाम के रखना हाथ मेरा इस दुनिया में भीड़ भारी है कही खो न जाऊ में उसमें ये ज़िम्मेदारी अब तुम्हारी है 

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 तुम बस मेरा हाथ थामे रखना ज़िन्दगी भर साथ निभाने की ज़िम्मेदारी मेरी है 

 बहुत कोशिश की इस दुनिया ने हमें रुलाने की मगर क्या कर सके ऊपर वाले ने ज़िम्मेदारी ली हे हमें हँसाने की 

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 तुम पर भरोसा करना मेरा फैसला है और अब मेरे फैसले को सही साबित करना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है 

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 इंतजार करना अब ज़िम्मेदारी हे मेरी लौट कर वापस आना ज़िम्मेदारी हे तुम्हारी 

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 जिम्मेदारी के बोझ ने कुछ ऐसे दिन दिखाए है सालो तक त्यौहार माँ ने एक ही साड़ी में मनाये है 

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 जिन पर जिम्मेदारियों का बोझ नजर आता है उनको रूठने और टूटने कोई बहाना नहीं नजर आता है