अपनों पर शायरी
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मेरे अपनो को पैगाम देना खुशियाँ का दिन हँसी की श्याम देना जो पढ़े इस शायरी को उसके चहेरे पर मीठी सी मुस्कान देना
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हँसाना आदत है मेरी हर कोई खुश रहे ये दुआ है मेरी चाहे हमें कोई याद करे या न करे मगर अपनो को याद करना आदत है मेरी
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दुनिया से लड़ लेंगे मगर अपनो से हार जायेंगे क्योकि अपनो के साथ मुझे जितना नहीं बल्कि जीना है
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कितना अजीब सा लगता है जब मोहब्बत हो और प्यार न हो और जब कोई अपना हो मगर पास न हो
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ना कोई मंजिल पद चाहिए ना कोई पहचान चाहिए बस एक ही दुआ है उस रब से की अपनो के चहेरे पर मुस्कान चाहिए
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क्या करे शिकायत गैरो पर हमें तो अपनो ने ही दगा दिया है अपना समझते थे हम जिनको हम पर वार उसने ही किया है
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किसी को शायरी पसंद है तो किसी को गजल पसंद है दुसरो का पता नहीं मगर मुझे तो अपनो की मुस्कान पसंद है
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दुसरो को नहीं मैने तो खुद अपनो को आजमाया है हर एक की तन्हाई दूर की मैने फिर भी हर मोड़ पर मैने खुद को तन्हा पाया है
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तेरी याद अब ज़िन्दगी से भुलाई नहीं जाती और अपनो से दुश्मनी कभी निभाई नहीं जाती
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होश का पानी छिड़को मदहोशी की आँखों पर कभी अपनो से न उलझो गैरो की बातों पर
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अपने वो नहीं जो तस्वीर में खड़े हो अपने वो है जो दुःख में साथ खड़े हो
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